यहां पढ़ें मुसलमान क्यों करते हैं कुर्बानी, क्या है इसका इतिहास, किसकी याद में दी जाती है जानवरों की कुर्बानी

eid ul azha news

आगरा. आज के जुमा के ख़ुत्बे में मौलाना हाजी इकबाल ने कहा, इस्लाम के एक अहम रुक्न हज्ज की बात होगी इस वक़्त पूरी दुनिया के मुसलमान मक्का मुकर्रमा पहुँच रहे हैं. अल्लाह के घर का तवाफ़ करने और अराफ़ात के मैदान में हाज़िर होने, अराफ़ात की हाज़िरी ही हज है. जो मुसलमान अराफ़ात में नहीं पहुँच सकता वो अपने मुल्क में ईदुल.अज़्हा की नमाज़ अदा करता है और अल्लाह को अपनी क़ुर्बानी पेश करता है. ये क़ुर्बानी क्या है और क्यों करते हैं, दरअसल ये इब्राहीम अ़लैहिस्सलाम की सुन्नत है. अफ़्सोस हमको सिर्फ़ क़ुर्बानी याद है. 

क़ुरआन में दर्ज बाप.बेटे की बात.चीत नहीं मालूम जो कि असल चीज़ है. सूरह साफ़्फ़ात में आयत नम्बर 100 से 107 तक ये बात.चीत दर्ज है. इसमें कहा गया है. ऐ मेरे रब मुझे नेक बेटा अता कर सो हमने उन्हें सहनशील बेटे की ख़ुशख़बरी दी. फिर जब वो बेटा उनके साथ दौड़ धूप की उम्र को पहुँचा तो इब्राहीम ने कहा कि बेटे मैंने ख़्वाब देखा है कि मैं तुम्हें ज़िबह कर रहा हूं. अब बताओ तुम्हारी क्या राय है बेटे ने कहा कि अब्बाजान वही कुछ कीजिए जो आपको हुक्म हुआ है. अगर अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे सब्र करने वाला पाएंगे. फिर जब दोनों ने सरे तस्लीम ख़म कर दिया और इब्राहीम ने बेटे को पेशानी के बल गिरा दिया. तब हमने उसे पुकारा ऐ इब्राहीम तुमने ख़्वाब को सच कर दिखाया तो हम यक़ीनन नेकी करने वालों को ऐसे ही सिला देते हैं. 

यक़ीनन ये एक खुला इम्तिहान था और हमने एक बड़ी क़ुर्बानी उनका फ़िदिया दिया. ये बात.चीत हमको मालूम ही नहीं है. उसको समझने की ज़रूरत है कि अल्लाह के हुक्म के आगे अपने जिगर के टुकड़े को क़ुर्बान करने को तैयार हो गए. हम कितना अल्लाह के हुक्म को मान रहे हैं. हर एक को इस पर सोचने की ज़रूरत है. यही क़ुर्बानी के पीछे का मतलब है. क़ुर्बानी करते वक़्त ये बात अपने ज़हन में रखें कि ऐ अल्लाह जिस तरह तेरे ख़लील की ये सुन्नत अदा कर रहा हूं. मैं अपनी ज़िन्दगी में तेरे हुक्म को भी उसी तरह मानूँगा. अल्लाह हम सबको इसकी तौफ़ीक़ अता फ़रमाए. आमीन.