धर्मनगरी काशी में एक ऐसा अनोखा भारत माता का मंदिर है, जहां कोई देव विग्रह, मूर्ति नहीं है बल्कि यहां गर्भ गृह में मौजूद है.
तस्वीरों में आपको जमीन पर उकेरा गया भारत वर्ष का मानचित्र दिख रहा होगा. यही इस मंदिर की देवी यानी भारत मां की मूर्ति है. कैंट रेलवे स्टेशन से काशी विदयापीठ रोड पर ये मंदिर मौजूद है.
गुलाबी पत्थरों से निर्मित मंदिर के चमकते खंभे स्तंभ इसकी ऐतिहासिकता को बयां करते हैं. दो मंजिला इस मंदिर के गर्भगृह में कुंडाकार प्लेटफार्म पर मकराना मार्बल पत्थर पर यूं ही ये मानचित्र नहीं उकेरा गया, बल्कि इसके पीछे गणितीय सूत्र आधार हैं.
जब सीमाएं पाकिस्तान पार अफगानिस्तान और पूरब में पश्चिम बंगाल के आगे फैली हुई थी, तब के नक्शे को दिखाया गया है. इसमें पहाड़ों, नदियों को थ्री डी की तरह उकेरा गया है.
गुलाबी पत्थरों से बने इस मंदिर में संगमरमर पर तराशा गया अखंड भारत मां का नक्शा ही इसकी खासियत है. मकराना संगमरमर पर अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका इसका हिस्सा है.
साल 1917 के मानचित्र के आधार पर इस मंदिर में भूचित्र को पूरी तरह गणितीय सूत्रों के आधार पर उकेरा गया. उदाहरण के तौर पर ऐसे समझिए. इसकी धरातल भूमि एक इंच में 2000 फीट दिखाई गई है. जबकि समुद्र की गहराई भी इसी हिसाब से दर्शाई गई है. शिल्प में नदी, पहाड़, झील और फिर समुद्र को उनकी ऊंचाई-गहराई के सापेक्ष ही बनाया गया है. यही नहीं, जहां जहां समुद्र है, वहां नीले रंग का पानी भरा जाता है.
मंदिर की दीवारों पर दर्ज नक्शे इस मंदिर की भव्यता को बढ़ाते हैं. मंदिर की एक और खासियत है कि यहां मंदिर को बनाने वाले शिल्पकारों को भी पूरा सम्मान एक शिलालेख के जरिए दिया गया है. शिलालेख के मुताबिक, उस वक्त के कला विशारद बाबू दुर्गा प्रसाद खत्री के नेतृत्व में मिस्त्री सुखदेव प्रसाद व शिवप्रसाद ने 25 अन्य बनारसी शिल्पकारों के साथ मिलकर करीब छह सालों में ये मंदिर बनाकर तैयार किया.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1936 में काशी प्रवास के दौरान इस धरोहर को राष्ट्र को समर्पित किया था. खास बात है कि इस मंदिर में अन्य देवालयों की तरह रोज पूजा नहीं होती. इसलिए यहां कोई पुजारी नियुक्त भी नहीं है. लेकिन केयरटेकर के रूप में राजेश समेत अन्य कुछ लोग काम करते हैं.