बलिया जनपद के नरहीं में फागुन महीने के शुरू होते ही इस गांव मे बसन्ती बयार के साथ गांव-गांव ढोल, मृदंग और झाल ताशे पर बूढ़े बुजुर्ग, नौजवान और बच्चे एक साथ फाग के रस में डूब गये हैं.
यूपी के बलिया जनपद के नरहीं में फागुन महीने के शुरू होते ही इस गांव मे बसन्ती बयार के साथ गांव-गांव ढोल, मृदंग और झाल ताशे पर बूढ़े बुजुर्ग, नौजवान और बच्चे एक साथ फाग के रस में डूब गये हैं.
होली आने से पहले ही नरही गांव के लोग एक साथ मिलजुलकर फाग और होली के गीतों पर जमकर झूमते हुए नजर आते हैं.
गांव वालों के साथ-साथ गांव में आने जाने वाले लोग भी बरबस ही अपने को इस रस में डुबोने से रोक नहीं पाते है.
ग्रामीणों ने बताया कि वो सूरदास के भक्ति गीत और तुलसी दास के चौपाई को लोक धुन में पुरानी परम्पराओ के साथ पूरे जोश से एक साथ फाग गाते हैं.
नरहीं के लोगो का कहना है कि फाग हमारी संस्कृति का अनमोल धरोहर है. जिससे समाज मे समरसता कायम होती है. इस महीने में हम सारी दुश्मनी भुला हम एक साथ फाग गाते हैं.
ग्रामीणों ने बताया कि वो 'अंजनी सुत मेरे मन भायो', 'राम से खेलब होरी', 'हे हरि बाजत नवल बधाई' जैसे फागुन के गीतों को गाते हैं.