-कोर्ट की तल्ख टिप्पणी, सिर्फ सरकार की नीतियों से असहमति पर किसी को सलाखों में नहीं डाल सकते
नई दिल्ली. टूल किट से मोदी सरकार का विरोध और किसानों का समर्थन करने के मामले में पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने मंगलवार को सशर्त जमानत दे दी है. जमानत देते वक्त कोर्ट ने सरकार के रवैये पर भी नाराजगी जाहिर की. न्यायाधीश ने कहा कि सिर्फ सरकार की नीतियों से असहमति पर किसी को सलाखों में नहीं डाल सकते. कोर्ट के आदेश के बाद देर रात को दिशा को दिल्ली की तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया.
दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने सख्त लहजे में कहा कि दिशा के खिलाफ ऐसी कोई भी ठोस सुबूत नहीं कि उसने भारत को बदनाम करने के इरादे से अभियान चलाया. इस बात के भी कोई साक्ष्य नहीं हैं कि उसने किसान आंदोलन की आड़ में हिंसा फैलाने की साजिश रची हो. हिंसा के मामले में कई लोगों को अरेस्ट किया गया है लेकिन एक भी साक्ष्या ऐसा नहीं दिखा जिसमें लगा हो कि दिशा का संबंध उन लोगों से था.
कोर्ट ने सरकार को नसीहत देते हुए कहा कि सिर्फ सरकार के गुरूर को बनाए रखने के लिए किसी पर देशद्रोह नहीं लगाया जा सकता.
दिल्ली पुलिस के पास ऐसा कोई सबुत नहीं है जो दिशा रवि और पोएटिक जस्टिसे फाउंडेशन यानी पीजेएफ के खालिस्तान समर्थकों के बीच संबंध को साबित करे. 26 जनवरी को लाल किला हिंसा के आरोपियों के पीजेएफ या दिशा रवि के संबंध को साबित करता हो. ऐसा एक भी सुबूत नहीं पुलिस पेश कर पाई. जिससे ये साबित हो सके कि दिशा रवि आलगाववादी विचारधारा की समर्थक है और उनके रिश्ते प्रतिबंधित संगठन सिख फॉर जस्टिस के बीच किसी तरह का कोई रिश्ता है.
वही घिसेपिटे साबूत जो कहीं नहीं ठहरते
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने पुलिस से सख्त लहजे में कहा वही पुराने घिसे पिटे सुबूत लेकर कोर्ट में हाजिर हुए हो जो दिशा रवि को अपराधी घोषित कर सलाखों के पीछे नहीं भेज सकते. उनका कोई आपराधिक रिकार्ड भी नहीं है और वो समाज में एक जिम्मेदार भूमिका निभाती हैं.
कोर्ट ने संस्कृत का श्लोक पढ़ा
कोर्ट में बहस के दौरान जज ने ऋग्वेद एक श्लोक पढते हुए सरकार को नसीहत दी. श्लोक का अर्थ बतो हुए जज ने कहा कि हमारे पास चारो ओर से ऐसे कल्याणकारी विचार आते रहें, जो किसी से न दबें, उन्हें कहीं से रोका न जा सके और अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले हों. संविधान के अनुच्छेद 19 में भी विरोध करने के अधिकार के बारे में पुरजोर तरीके से कहा गया है. ऐसे में सिर्फ असहमति जताना गलत नहीं.