विवादित बयानों के बाद रामचरितमानस की बिक्री में बढ़ोतरी, बयान देने से पहले रामचरितमानस को समझना होगा

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गोरखपुर. धार्मिक पुस्तक रामचरितमानस को लेकर चल रहे विवादित बयानों पर गीता प्रेस के प्रबंधन ने कहा कि ऐसे बयान सिर्फ सस्ती लोकप्रियता पाने के अलावा कुछ नहीं. ऐसी बयानबाजी पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता नहीं. इस तरह की बयानबाजी से नेता खुद अपना और अपनी पार्टी का ही नुकसान करते हैं. इस तरह की बयानबाजी के बाद रामचरितमानस जैसी धार्मिक पुस्तकों की बिक्री में बढ़ोतरी ही होती है. बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर द्वारा धार्मिक पुस्तक रामचरितमानस पर दिए गए विवादित बयानबाजी की तपिश उत्तर प्रदेश में भी पहुंच गई. जहां पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को लेकर एक विवादित बयान दिया, जिसमे उन्होंने रामचरित मानस पर पाबंदी लगाने की बात कही, जिसके बाद प्रदेश में भी राजनीति गरमा गई है.


रामचरितमानस लोगों को जोड़ने का ग्रंथ है, तोड़ने का नहीं

 रामचरितमानस पुस्तक और बयानबाजी को लेकर यूपीसिटी की टीम ने गीता प्रेस प्रबंधन से यह जानने की कोशिश की कि इस तरह के बयान बाजी के बाद क्या धार्मिक पुस्तकों की बिक्री पर कोई असर पड़ता है? तो गीता प्रेस के प्रबंधक लाल मणि तिवारी ने जो कहा वह सुनकर आप भी आश्चर्यचकित होंगे. उनका कहना था कि रामचरितमानस तो समाज को जोड़ने का ग्रंथ है, तोड़ने का नहीं, जो लोग इस तरह की बयान बाजी कर रहे हैं, मैं उनके विषय में ज्यादा कुछ तो नहीं कहना चाहता पर इतना जरूर कहूंगा कि यह सस्ती लोकप्रियता पाने और राजनीतिक बयानबाजी के सिवा कुछ नहीं है.मुझे यह भी पता नहीं कि ऐसी बयानबाजी से इन नेताओं को कोई लोकप्रियता मिलती है या नहीं, लेकिन यह जरूर कह सकता हूं कि, ऐसी बयानबाजी के बाद लोग स्वयं का नुकसान तो करते ही हैं, वही अपनी पार्टी का भी भरपूर नुकसान करते हैं. लाल मणि तिवारी कहते है कि इस तरह के बयान बाजी के बाद धार्मिक ग्रंथों सहित रामचरितमानस की बिक्री में वृद्धि निश्चित रूप से होती है.


करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र रामचरितमानस पर टिप्पणी हास्यास्पद 

 लालमणि तिवारी कहते हैं कि रामचरितमानस जैसा ग्रंथ जिससे सभी की आस्था जुड़ी हुई है, यह ऐसा ग्रंथ है, जिसमें सबसे बड़े त्याग का वर्णन किया गया है. जहां अयोध्या नगरी एक फुटबॉल की तरह नजर आती है जब श्री राम अयोध्या राज्य अपने अनुज भरत को सौंपना चाहते हैं, वही भरत अपने बड़े भाई श्री राम प्रभु को ही राज्य सौंपने की बात कहते हैं और सारा जीवन उनकी सेवा और उनके चरणों में बिताने की बात कहते हैं. यह ग्रंथ अटूट प्रेम, सौहार्द और मित्रता की भी मिसाल है. जहां श्री राम प्रभु ने कोल, भीलो और सबरी को गले लगाया वही निषाद राज और श्री राम प्रभु की मित्रता का सबसे बड़ा प्रमाण भी है. करोड़ों लोग घर घर में रामचरितमानस का पाठ करते हैं और उसे अपने घर के मंदिरों में रखते हैं, देश विदेश तक इस पुस्तक की डिमांड है. यह इस बात को प्रमाणित करता है कि रामचरितमानस घर-घर में लोकप्रिय है और लोगों की आस्था इसके प्रति अगाध है. बावजूद इसके यदि कोई रामचरितमानस पर इस तरह की टिप्पणी करता है तो यह हास्यास्पद है.


9 भाषाओं में रामचरितमानस पुस्तक का प्रकाशन

 धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन करने वाले गीता प्रेस मैनेजमेंट के अनुसार प्रतिवर्ष सवा दो करोड़ से ज्यादा धार्मिक पुस्तकें यहां प्रकाशित की जाती है, जिसमें 9 भाषाओं में 5 लाख से ज्यादा रामचरितमानस का प्रकाशन होता है. रामचरितमानस की कुछ पंक्तियों पर हमेशा विवाद होता रहा है इसमें प्रमुख रूप से "ढोल, शुद्र ,पशु, नारी सब ताड़ना के अधिकारी" के संदर्भ में गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी कहते हैं कि रामचरितमानस को तुलसीदास ने अवधी भाषा में लिखा है, चुकी अवधी भाषा और हिंदी भाषा के बहुत से शब्दों में और शब्दों के अर्थ में अंतर है जैसे ताड़ना का मतलब सिर्फ मारना पीटना ही नहीं होता. ताड़ना का मतलब भोजपुरी में भी ताड़ना यानी देखने को कहा जाता है. यानी उन पर वाच किया जाए तो कहने का तात्पर्य है कि इन सारी चीजों पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है. लोग अपनी—अपनी समझ के अनुसार इन चौपाइयों का अर्थ निकाल लेते हैं और विवाद को जन्म देते हैं. यदि उन्हें इसकी सही और सटीक जानकारी प्राप्त करनी है और इन ग्रंथों को पढ़ना होगा सिर्फ एक चौपाई का अपने हिसाब से अर्थ निकाल कर उस पर टिप्पणी करना उचित नहीं है. इस तरह की शंका समाधान के लिए हमारे यहां सात खंडों में "मानस पीयूष" का प्रकाशन किया जाता है. जहां प्रत्येक चौपाई का अर्थ समझाया गया है. यदि उसका अध्ययन कर लिया जाए तो सारी स्थितियां स्पष्ट हो जाएंगी. हमारे ग्रंथों में जो है हमने छाप दिया है, हमें इस पर कोई सफाई टिप्पणी देने की आवश्यकता नहीं.