बदलेगी तस्वीर, बच्चों की किताबों में अब दादी पोते संग बैडमिंटन खेलते, मां ऑफिस में दिखेंगीं

यह आरोप था कि प्राइमरी और जूनियर हाईस्कूल के बच्चों की किताबों में महिलाओं को सिर्फ घर के काम करते हुए ही दिखाया जाता था. कभी रसोई में तो कभी कमरे में झाड़ू-पोंछा करते हुए. लेकिन एकाएक अब यह तस्वीरें बदली जा रही हैं. यह मामला 2019 में यूनिसेफ भी पहुंच गया था. पुरानी तस्वीरों को हटाने और नई तस्वीरें लगाने की जिम्मेदारी राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद को दी गई है. नई तस्वीरों की बात करें तो दादी बगीचे में पोते के साथ खेल रही हैं. युवती ऑफिस का काम कर रही है आदि. यूनिसेफ के सुझाव पर पिछले तीन सालों से किताबों में लैँगिक असमानता वाली सामग्रियों को बहुत कम किया गया है. वही कक्षा 3 से 5 तक की अंग्रेजी की किताबों को ही देखें तो एक तस्वीर में दादी पोते के साथ पार्क में बैडमिंटन खेलते दिखती हैं. ऑफिस में काम करती युवती, फल विक्रेता महिला आदि. किताबों में छपी तस्वीरें बच्चों के दिमाग पर गहरा असर छोड़ती हैं. यदि हम बचपन से ही इस विभेद को दूर कर देंगे तो बड़े होने पर महिला-पुरुष के बीच की खाई अपने आप कम हो जाएगी. लिंग भेद लड़कियों के साथ लड़कों को भी समान रूप से प्रभावित करता है. इसलिए बचपन से ही इन भावनाओं को न पनपने दिया जाए. एनसीईआरटी के लैंगिक मुद्दों पर गठित फोकस ग्रुप ने भी महिलाओं एवं पुरुषों की एक समान छवि प्रस्तुत करने का सुझाव दिया है. ईरान-अफगानिस्तान का उदाहरण देते हुए बताया गया है कि दुनिया के कई देश बच्चों की किताबों में महिलाओं की कमजोर छवि पेश कर रहे हैं. वहीं किताबों में भी महिलाओं को घर की दीवार तक सीमित दिखाया गया है. उनके लिए टीचर ही एकमात्र करियर विकल्प दिखाई पड़ता है. वकील, महिला दुकानदार, बहन लौटते भाई की तस्‍वीरें बिना कुछ कहे के साथ खेत से फसल सिर पर लेकर बहुत बड़ा संदेश देती नजर आती हैं.